द्वितीय केदार भगवान श्री मद्महेश्वर मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ 22 मई, 2023 को खोल दिए जाएंगे

वैशाखी संक्रांति (विखोत संग्राद) पर्व दिवस पर श्री ओंकारेश्वर मंदिर, हिमवत्केदार पीठ ऊखीमठ, केदारनाथ-मद्यमहेश्वर शीतकालीन गद्दीस्थल में रावल जगद्गुरु जी की उपस्थिति में वेदपाठी आचार्यों द्वारा द्वितीय केदार श्री मद्यमहेश्वरजी के कपाटोद्घाटन की तिथि / मूहुर्त विक्रमी संवत् पंञ्चाङ्ग गणना की सहायता से घोषित की जाती है। इस अवसर पर रावल जी, प्रधान पुजारीगण, पञ्च गौण्डारी (हक्कहक्कूक धारी, दस्तूरधारी द्वितीय केदार श्री मद्यमहेश्वर धाम), मंदिर समिति के अधिकारी / कर्मचारी एंव पंचगाई गाँव ऊखीमठ निवासी, शासन बॉडी मौजूद रहती है । इनके अतिरिक्त भगवान के बाजीगर भी, बाजे के साथ सम्मिलित रहते हैं। घोषित तिथि/मूहर्त का लिखित रूप जिसे दिनपट्टा कहा जाता है, को थौर भण्डारी श्री मध्यमहेश्वर धाम को सुपुर्द किया जाता है।

सर्वप्रथम श्री ओंकारेश्वर मुख्य मंदिर में भगवान श्री मद्यमहेश्वर जी की भोग मूर्तियों से सजित सिंहासन को नियुक्त पुजारी जी – मध्यमहेश्वर, के साथ दो अन्य प्रधान अर्चकों द्वारा नंदी जी की सवारी और परिक्रमा करायी जाती है तत्पश्चात भगवान को यथास्थान पर सजाकर वेदपाठी आचार्यों द्वारा भगवान की राशियों के दान की पूजा करायी जाती है। इसके बाद विजय भाणे, घण्टी, शंखध्वनि एंव मंगलविजय ध्वनि के साथ प्रधान अर्चकों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ सजित सिंहासन को सभामण्डप में लाया जाता है। पहले भगवान का स्नान कराया जाता है, धूप आरती, एकमुखी, त्रिमुखी और पञ्चमुखी आरती की जाती है, इसके बाद भगवान का रूद्राभिषेक

(भस्म, चंदन, दूध, दही, घी और मधु से स्नान) किया जाता है। रूद्राभिषेक पश्चात् भगवान का विशेष शृंगार किया जाता है, भगवान का शृंगार करते हुए प्रधान अर्चक महाराज शंकर लिंग जी कहते हैं कि मध्यमहेश्वर भगवान शृंगार प्रिय हैं। इसके पश्चात् भगवान को बालभोग लगाया जाता है। पुनः भगवान की मूर्तियां का वैदिक मंत्रों के साथ उस वर्ष महेश्वर में पूजा करने हेतु नियुक्त पुजारी जी द्वारा विशेष

पूजा-अर्चना की जाती है। अब पलदीप जो की पञ्च गौण्डारी (पंवारवंशी) में से नियुक्त व्यक्ति द्वारा भगवान को श्री केदारनाथ – श्री ओंकारेश्वर भोगमण्डी में चावल का भोग पकाया जाता है और भगवान की भोग पूजा कर आरती की जाती है। इस दिन आधे दिवस तक भगवान भक्तगणों को दर्शन हेतु सिंहासन पर विराजमान रहते हैं।


Author : Abhishek Panwar

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